कोरोना महामारी के संकट ने हमारे संगठन के लिए जो तमाम समस्याएँ खड़ी कर दी हैं उनमे एक है ‘साम्या’ के न निकालने की हमारी मजबूरी। वही मजबूरी इस ‘बुलेटिन’ को निकालने का कारण बना।
दुर्भाग्यवश, इस पहले बुलेटिन की शुरुआत श्रद्धांजलि अर्पित करने से करनी होगी। सबसे पहले तो हमे अपनी सेना के बहादुर अधिकारी और जवानों को याद करना होगा जिन्होंने सरहद पर अपनी जान दी है। उनके इस बलिदान को याद करते हुए हम उनके परिवार के लोगों के साथ अपनी भावनाओं को जोड़ते हैं।
हम उन हजारों लोगों को याद करते हैं जिनकी जानें कोरोना की वजह से चली गयी हैं। जिन लोगों की जानें बंगाल और उड़ीशा मे आए अमफन तूफान के कारण चली गयी, उनके परिवारों के दुख को हम बांटते हैं. निश्चित रूप से हम उन तमाम महिलाओं, बच्चों और पुरुषों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होने अपनी काम की जगह से अकल्पनीय मुसीबते और कष्ट झेलते हुए अपने घर पहुँचने के प्रयास के दौरान अपनी जाने गंवा दी। सड़क हादसो मे, ट्रेन के पहियों के नीचे दबकर, भूख से तड़पते हुए इनकी दर्दनाक और अनावश्यक मौतें हुई हैं जिनको कभी भूलाया नहीं जा सकता।
हमारा यह पहला बुलेटिन कई तरह की काली घटाओं से घिरे वातावरण मे आपके सामने आ रहा है। एक तरफ, सीमा पर तनाव के बादल छाए हुए हैं; फिर देश भर को महामारी के बादल घेरे हुए हैं; इनके साथ साथ, आम जनता की टिमटिमाती आशा की किरणों को बेकारी, भुखमरी, बीमारी और असहनीय शारीरिक और मानसिक बेहाली की काली घटाएँ लुप्त कर रही हैं।
इन परिस्थितियों मे देश की करोड़ों महिलाओं की आवाज़ उठाने का काम कितना दुभर हो गया है। ना हम सड्कों पर उतर सकते हैं, न बड़े प्रदर्शन आयोजित कर सकते हैं। चारों तरफ, महिलाओं का काम समाप्त हो रहा है, उन्हे राशन मुहैया नहीं हो रहा है, उनके साथ होने वाली तरह तरह की हिंसा ज्यों की त्यों बरकरार है, उनके और उनके बच्चों का स्वास्थ दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा है और उनके घरों के पुरुष भी बेरोजगारी की चपेट मे हैं।
आंदोलन आवश्यक है और आंदोलन के नए तरीके हमे ढूंढ़ने होंगे।
इस लॉक डाउन के दौरान AIDWA की तमाम इकाइयों ने राहत का काम बहुत बड़े पैमाने पर किया है। हजारों परिवारों को राशन, कपड़ा, साबुन,भोजन पहुंचाने का काम किया है। यही नहीं, तमाम ज्वलंत मुद्दों पर हमने अपने संगठन के आह्वान पर स्वतंत्र रूप से देश भर मे अपना विरोध जताया (1 जून), अन्य महिला और जनवादी संगठनो के साथ सफूरा और अन्य कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए प्रदर्शन किया (3 जून), करोना के खिलाफ मोर्चा लेने वाले स्वास्थ कर्मी इत्यादि के साथ अपनी एकजुटता के इजहार का प्रदर्शन हमने तमाम देशवासियों के साथ किया (22 मार्च), और सीआईटीयू के आह्वान पर श्रमिक-विरोधी गतिविधियों के खिलाफ हमने भी प्रदर्शन किया (21 अप्रैल), एआईकेएस ने जब किसानों की समस्याओं के विरुद्द अपनी आवाज़ उठाई तो हमने उनका साथ दिया (27 मई) और 16 जून को जब CPIM ने 4 महत्वपूर्ण मांगों को लेकर ज़बरदस्त प्रदर्शन का आह्वान किया तो हमारी हजारों महिला सदस्यों ने बढ़-चढ़ के उसमे भाग लिया।
इस संपादकीय मे हम अपनी केरल की बहनों का उल्लेख ज़रूर करेंगे। केरल की सरकार ने कोरोना से निबटने के लिए जो अहम भूमिका निभाई वह पूरे देश के लिए मिसाल है और हमे गर्व इस बात पर अवश्य है कि केरल की स्वास्थ मंत्री, श्रीमती शैलजा टीचर, हमारी AIDWA की नेता भी है। राज्य के लोगों और ‘मेहमान’ मजदूरों को स्वास्थ लाभ पहुंचाने के साथ साथ उनकी तमाम जरूरतों को पूरा करने का जो बहुत बड़ा काम हुआ, उसमे केरल की तमाम महिलाएं – स्वास्थ कर्मी, पंचायत से जुड़ी तमाम महिलाएं, आशा और आंगनवाड़ी की बहने, कुटुंबश्री के हजारों समूह मे शामिल महिलाएं – ने अभूतपूर्व साहस और ऊर्जा के साथ अपने आपको शामिल किया। इनमे लाखों महिलाएं हमारी सदस्य हैं लेकिन AIDWA ने अपनी स्वतंत्र पहल पर भी बड़े काम किये हैं – 20 लाख से अधिक चंदा मुख्य मंत्री कोश के लिए जमा किया, हर तरह के राहत कार्य को संगठित किया और हर ज़िले मे महिलाओं के लिए हेल्प लाइन उपलब्ध करवाए जिनके माध्यम से महिलाओं की हर तरह की सहायता की गयी।
इस बुलेटिन के माध्यम से हमने कई महत्वपूर्ण विषयों पर लेख आप तक पहुंचाने का प्रयास किया है। हमे आशा है कि आप अपनी प्रतिक्रिया हमे भेजेंगे और इस बुलेटिन को अधिक मददगार और प्रासंगिक बनाने के लिए अपने महत्वपूर्ण सुझाव भी देंगे।
सुभाषिनी अली,
उपाध्यक्ष, AIDWA