सम्पादकीय
इस बार की सम्पादकीय उत्तर प्रदेश के चुनाव अभियान के दौरान ही लिखने का प्रयास किया जा रहा है। पिछले 3 हफ्तों से कानपुर,इलाहाबाद के कोरांव, देवरिया के सलेमपुर और अब चंदौली के चकिया क्षेत्रों मे चुनाव प्रचार करने का मौका मिला। कानपुर कई सालों से भाजपा का गढ़ रहा है। यहाँ लोगों ने बिना उम्मीदवार के बारे मे सोचे, भाजपा को वोट देने का काम किया है। अक्सर यह जानते हुए भी कि जिसे वोट दे रहे हैं उसने कोई काम नहीं किया है लेकिन फिर भी उसीको वोट दिया गया है! शहर मे 199, 91 और फिर 2004 मे हुए ज़बरदस्त दंगों से पैदा गहरे धार्मिक ध्रुवीकरण इन जीतों का कारण था। इस बार, चीजें बहुत बदली हुई नज़र आयीं: बेकारी, गरीबी और योगी सरकार की हर क्षेत्र मे भारी असफलता बड़े मुद्दे बन गए और इनका असर भी चुनाव परिणामो मे देखने को मिलेगा।
कोरांव, सलेमपुर और चकिया वह इलाके हैं जहां भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने आदिवासी (कोल), दलित भूमिहीनों और तमाम गरीबों की लड़ाइयाँ लड़ी हैं। चकिया मे जनवादी महिला समिति की बहुत सक्रिय इकाई भी है और इस इलाके मे कोल और दलित महिलाएं,हाथ मे लाल झण्डा लिए, ज़मीन के लिए हुए जुझारू संघर्षों मे आगे रही हैं। इन्ही तीन सीटों पर जनवादी महिला समिति ने खुलकर सीपीआईएम के प्रत्याशियों को समर्थन देने का और बाकी सीटों पर जो भी दल भाजपा को हराने की स्थिति मे दिखाई देता है, उसको वोट देने का फैसला लिया है।
कोरांव, सलेमपुर और चकिया के कई गांवों मे जाने और वहाँ की महिलाओं के साथ बात-चीत करने का अवसर मिला। गरीबी, भूख और काम का अभाव अपनी उपस्थिति बड़े ही निर्मम तरीके से दर्ज कर चुके हैं। पहले से भी ज़्यादा। करोना काल मे लोगों की कमर ही टूट गयी है। योगी सरकार ने पूरी तरह से गरीबों की दुर्दशा को अपनी पीठ दिखाने का काम किया है। जिन गांवों मे हम गए, वह सरकार के झूठे प्रचार की सच्चाई को बयान कर रहे थे – उत्तर प्रदेश मे मिलने वाली बहुत ही कम 500/- की विधवा और वृद्धा पेंशन भी नहीं मिल रही है। सलेमपुर मे एक विधवा मिली जो बेहरी-गूंगी भी है। उसके विचलित भाव को आपके सामने व्यक्त करना ही असंभव है। पूरे प्रदेश मे मनरेगा का काम बिलकुल बंद है। भूमिहीन परिवारों की महिलाओं ने बताया कि दूसरों के खेतों मे अब काम भी नहीं मिलता है क्योंकि मशीनों से काम हो रहा है। फिर भी, कुछ मजदूरी मिल जाती ही तो केवल 100/- रोज़ ही मिलते हैं। मुफ्त मे दिये जाने वाले राशन का भाजपा बहुत डंका पीट रही है लेकिन पूरे प्रदेश मे 5 किलो की जगह 4 किलो ही मिलते हैं और कई अति गरीब लोगों के पास राशन कार्ड नहीं हैं। चुनाव के पहले, योगी सरकार ने नमक, तेल और चना भी दिया है (जो अब बंद हो गया है) लेकिन नमक मे प्लास्टिक जैसी चीज़ के होने के कारण उसका इस्तेमाल लोग नहीं कर रहे हैं, चने मे अक्सर फुपूंद लगा होता है और पामोलिन के तेल की हींक से लोग परेशान हैं! इन महिलाओं के परिवार के जवान बेटे अधिकतर प्रवासी मजदूर हैं जो अक्सर दो साल मे एक ही बार घर आ पाते हैं। अब उनको मिलने वाला काम भी बहुत घट गया है और मजदूरी भी कम हो गयी है। एक मजदूर कोरांव मे मिला था जो केरला काम करने गया था और लकड़ाऊन मे वहीं फंस गया था। उसने बताया कि वहाँ सरकार ने तमाम मजदूरों को भरपेट भोजन ही नहीं दिया बल्कि मालिक ने भी उनकी रहने की जगह खाली नहीं कारवाई। जब ट्रेने चलने लगीं, तो सरकार की तरफ से बस से उन्हे स्टेशन तक पहुंचाया गया, टिकट खरीद कर दिया गया और रास्ते का खाना भी उनको एक अच्छे बैग मे दिया गया।
ज़ाहिर है कि इन तमाम गांवों के बच्चों की पढ़ाई दो साल से बिलकुल बंद है। आनलाइन पढ़ाई इनके बस के बाहर हैं और योगी सरकार जो अब स्मार्ट फोन देने की बात कर रही है ने किसी प्रकार की मदद गरीब बच्चों की नहीं की। अधिकतर गरीब लड़कियों के बारे मे कहा जा रहा है कि उनकी पढ़ाई तो हमेशा के लिए छूट गयी है।
चकिया बनारस से लगा हुआ है। बनारस मे भी पिछले दिनों का भगवा जुनून कम देखने को मिल रहा है। इसीलिए, मोदी यहाँ हर महीने आ रहे हैं और, चुनाव से पहले, पूरे तीन दिन – देश के काम और यूक्रेन मे फंसे भातीय बच्चों को भूलकर – बनारस मे रहने वाले हैं। उन्हे उम्मीद है कि बाबा विश्वनाथ उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी पार्टी का बेड़ा पार लगा लेंगे।
उत्तर प्रदेश के गांवों की बदहाली निश्चित रूप से देश के कई हिस्सों की कहानी होगी। हमारे संगठन को ग्रामीण महिलाओं की समस्याओं और पीड़ा को एक बार फिर अपने काम का केंद्र बिन्दु बनाने की आवश्यकता साफ दिखाई दे रही है।
पिछले दो महीनो के इस दौर मे, 5 राज्यों मे होने वाले विधान सभा के चुनाव का बड़ा मुद्दा रहा हैं। इनका परिणाम अगर भाजपा के विपरीत जाता है तो हमारे संघर्षों को आगे बढ़ाने का रास्ता भी खुल जाएगा।
चुनाव के अलावा भी कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी हैं जिनका ज़िक्र इस अंक मे आपको मिलेगा। हरियाणा की स्कीम वर्कर्स का बहादुराना संघर्ष जो सरकार के आक्रमण, ठंड, बरसात और भूख के बावजूद जारी है हमारे संघर्षों के इतिहास मे एक मील का पत्थर है। यूक्रेन का युद्ध जो एक तरफ साम्राज्यवादी देशों के दोहरे, मक्कार चरित्र का पर्दाफाश करता है, वह दूसरी तरफ युद्ध मे होने वाली बरबादी का नया नमूना भी पेश कर रहा है।
आने वाले दिनों मे हमारी सरकार किस तरह के नए हमले करने जा रही है उसके भी स्पष्ट संकेत हैं: LIC के शेयर को बेचने की ज़बरदस्त तयारी हो रही है और खाना पकाने की गैस का दाम 105/- सिलिन्डर बढ़ा दिया गया है।
अंत मे एक ज़रूरी बात। उत्तर प्रदेश के चुनाव मे तमाम विपक्षी पार्टियां धूआधार प्रचार कर रही हैं लेकिन सांप्रदायिकता और मुसलमानों पर हो रहे तमाम हमलों पर खामोश हैं। केवल बामपंथियों मे इन सवालों पर बोलने की हिम्मत है। इस संदर्भ मे हम अपनी दिल्ली की बहनों को सलाम पेश करते हैं कि उन्होने सीपीआईएम के साथ मिलकर दिल्ली मे हुए दंगों के पीड़ितों को अपने दर्द को व्यक्त करने का मौका दिया और उनके समर्थन मे बड़ा धरना आयोजित किया।
सुभाषिनी अली
(राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, एडवा)