सम्पादकीय
अपने हर बुलेटिन में महिलाओं पर बढती हिंसा, बढती साम्प्रदायिकता, संविधान पर नए हमले जैसी ख़बरों को हमे छापना पड़ता है. कहीं कहीं कुछ आशा की किरणे दिख जाती हैं जिनकी सूचना आपको देना हम आवश्यक समझते हैं. तो चलिए, एक ऐसी आशानिवित करने वाली खबर से इस सम्पादकीय को शुरू करते हैं.
अगस्त महीने की शुरुआत में ही इस बात की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी की बिहार में राजनैतिक भूचाल हो सकता है. दरअसल, महाराष्ट्र में भाजपा द्वारा शिव सेना को सफलतापूर्वक तोड़ने के बाद, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में चलने वाली धर्मनिरपेक्ष दलों की मिली-जुली सरकार को पलट दिया गया और भाजपा द्वारा नियंत्रित शिव सेना के बागी शिंदे के नेतृत्व में सरकार बन गयी. इससे धर्मनिरपेक्ष ताकतों और महाराष्ट्र की जनता को ज़बरदस्त झटका लगा. इस घटना ने बिहार में NDA की सरकार का नेतृत्व करने वाले नितीश कुमार को आगाह कर दिया की इसी तरह का खेल उनके साथ भी भाजपा कर सकती है और उन्होंने तेज़ी के साथ पैंतरा बदला और राजद के साथ समझौता कर उसके साथ साझा सरकार बनाने का काम किया. बहुत दिन के बाद, भाजपा के षड्यंत्रकारी गतिविधियों की करारी हार हुई और उनको मुंह की खानी पड़ी. हिंदी भाषी एक बड़े और महत्वपूर्ण राज्य में भाजपा के सहयोग से चलने वाली सरकार का हटना और उसकी जगह धर्म-निरपेक्ष दलों की सरकार का बनना एक महत्वपूर्ण राजनैतिक घटना है और निश्चित तौर पर इसने भाजपा से पीड़ित लोगों को काफी राहत दिलवाने का काम किया.
इसके आलावा, लेकिन, बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण गतिविधियाँ ही घटी हैं. इनमे सबसे अधिक निंदनीय, खतरनाक और भाजपा के घिनौने चेहरे का पूरी तरह से पर्दाफाश करने वाली घटना थी बिलकीस बानो के मामले में ११ सजायाफ्ता बलात्कारी-हत्यारों का गुजरात सरकार द्वारा छोड़ा जाना. इस मामले की पूरी रिपोर्ट इस बुलेटिन में है लेकिन गुजरात सरकार का यह कदम और इस पर प्रधान मंत्री की चुप्पी एक बार फिर हमे इस बात की याद दिलाती है की न्याय की प्रक्रिया को किस हद तक तोड़-मरोड़कर अन्याय को सुनिश्चित करने वाली प्रक्रिया में परिवर्तित कर दिया गया है.
बड़ी ख़बरों के पीछे, कितनी असंख्य अत्याचार की कहानियां छिप जाती हैं, इसकी याद एक बार फिर आई जब आपके सम्पादक ने ३१ तारीख को खरगौन में दंगा-पीड़ितों से मुलाक़ात की. खरगौन मध्य प्रदेश का एक जिला है जहां भाजपा ने अपनी खोई हुई सीटों पर फिर से कब्ज़ा जमाने के लिए साम्प्रदायिक तनाव और हिस्सा का सहारा लिया है. तमाम लोगों ने कुख्यात कपिल मिश्र का नाम सुना है. यह वहीँ शख्स है जिसने दिल्ली में नफरत फैलाने के इरादे से गंदे भाषण दिए और घटिया नारे लगाए. पूर्वोत्तर दिल्ली में २०१९ में दंगा भड़काने में उनका बड़ा हाथ था. यही कपिल मिश्र दिल्ली से बहुत दूर, रामनवमी के त्यौहार के समय, खरगौन पहुंचे. यहाँ हर साल, रामनवमी का जुलूस निकलता है, उसका स्वागत स्थानीय मुसलमान करते हैं, हार-मालाओं से जुलूस में भाग लेने वालों का अभिनंदन करते हैं. इस साल, जुलुस आया, मुसलमानों के मोहल्ले में रुका और फिर आगे नहीं बढा. वहीं खड़ा रहा. DJ बजाय गया, अश्लील नारे लगाए गए और जब नमाज़ पढने के बाद लोग मस्जिद से निकले तो उन पर हमला कर दिया गया. पुलिस देखती ही रही. लोगों के दुकान और मकान जलाए गए और २०० से अधिक मुसलमान जिनमे नाबलिग लड़के भी थे गिरफ्तार कर लिए गए. वे अभी भी बंद हैं. यह रमजान का महीना था. लोगों की ईद बहुत ही कडवी बना दी गयी.
CPIM का प्रतिनिधि मंडल हादसे के तुरंत बाद खरगौन गया. और कोई वहां लोगों की सुद्ध लेने नहीं गया. हमने कुछ राहत की सामग्री भी पहुंचाई और पूरे मामले की रिपोर्ट को भी सार्वजनिक किया.
३१ को मैं cpim के नेताओं के साथ खरगौन गयी. बहुत बड़ी संख्या में पीड़ित लोग हमसे मिले. उनमे औरते ही अधिक थी. उनके घर के पुरुष ५ महीनो से जेल में थे. कुछ पता नहीं चल रहा है की उनका क्या होगा. यह परिवार गरीब, मजदूरी करने वाले लोगों के हैं. बच्चों का पेट भरा नहीं जा रहा है तो पढ़ाई तो छूट ही गयी है. पूरी तरह से निराश हैं यह लोग. कोई भी उनकी सुनने और कहने वाला नहीं है.
हम लोगों ने उन्हें इतना ही भरोसा दिलाया की हम उनके साथ खड़े रहेंगे और जो कुछ भी उनकी मदद में कर सकते हैं वह करेंगे.
खरगौन की कहानी देश के कोने-कोने में दोहराई जा रही है. सांप्रदायिक विभजन और ध्रुवीकरण का सहारा लेकर हमारे तमाम अधिकारों पर सरकार कुठाराघात कर रही है. इन कहानियों को धीरज से सुनना और इनको सुनाना हमारा बड़ा काम बन गया है. लोगों को जताना और जगाना और फिर उन्हें अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लामबंद करना हमारी प्राथमिकता बन गई है.
सम्पादकीय समाप्त करते-करते, एक आशा की किरण और नज़र आई है: हमारे बहन, हमारी साथी, हमारी सहयोगी तीस्ता सेतालवाद को सर्वोच्च न्यायलय ने ज़मानत पर छोड़ने का फैसला सुनाया है.
संघर्ष व्यर्थ नहीं जाएगा! लड़ाई हमारी जारी रहेगी!
- सुभाषिनी अली (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, एडवा)