कोरोना की महामारी थमने का नाम नहीं ले रही है। जब हमारा पहला बुलेटिन निकला था, 1 जून को पूरे देश मे 5,85,000 कोरोना पाजिटिव केस थे, दुनिया के चौथे नंबर पर हम थे। तब तक 17,400 लोगों की मौत हो चुकी थी। आज, 1 अगस्त से कुछ दिन पहले, 24 जुलाई को हम दुनिया के तीसरे नंबर पर पहुँच गए हैं। अभी 16,00,000 से अधिक पाजिटिव केस हैं और 35,000 से ज़्यादा लोग मर चुके हैं। 1 महीने मे मरीज़ों और मरने वालों की संख्या दुगनी हो गयी है और दोनों की बढ्ने की रफ्तार तेज होती ही चली जा रही है। केरल को छोड़, कोई भी सरकार अपनी स्वास्थ सेवाओं को बढ़ाने मे सफलता हासिल नहीं कर पायी है। स्वास्थ के प्रति कई दशकों की सरकारी उदासीनता के भयानक परिणाम सामने आ रहे हैं।राज्य सरकारों के पास बीमारी से निबटने के लिए और बीमारों को स्वस्थ करने के लिए साधन समाप्त होते दिखाई दे रहे हैं। और केंद्र सरकार किसी तरह की मदद करने को तैयार ही नहीं है। PMcares मे इकट्ठा अरबों रुपए किस दिन जनता के काम आएँगे, इसके कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। बस कुछ वेंटिलेटर, और वह भी घटिया दर्जे के, खरीद कर कुछ राज्यों के अस्पतालों मे बांटे गए हैं। अब तो केंद्र सरकार के स्वास्थ विभाग की ओर से जनता को संबोधित करना भी बंद हो गया है।स्थिति क्या है, आगे क्या होने वाला है, सरकार क्या कर रही है, यह तमाम बातें बंद हो गयी है। केंद्र का कोई मंत्री कोरोना के बारे मे बात करते नहीं दिखाई देता है। प्रधान मंत्री को तो खैर इन बातों से कोई मतलब ही नहीं है। देशवासियों को स्वस्थ बनाने के लिए वह क्या करने जा रहे हैं, इस पर तो वह मौन हैं लेकिन ‘150’ अन्य देशों की मदद करने का वह दावा जोर शोर से कर रहे हैं। सच तो यह है की दुनिया भर मे 150 देश है ही नहीं जो कोरोना के प्रकोप से पीड़ित हैं।
अपनी नाकामी से ध्यान बंटाने के लिए, दवा और इलाज की मांग से बचने के लिए, सरकार राम मंदिर बनाने की तैयारी मे जुटी है। अस्पताल बनाने की बात तो दूर,, टूटी छतों, गंदी इमारतों, जर्जर वार्डो की मरम्मत करने की बात भी सरकारें नहीं कर रही हैं लेकिन चांदी की ईंटों की नींव डालकर, राम मंदिर बनाने की तय्यारियां जोर शोर से चल रही हैं। दवा, वेंटिलेटर, आई सी यू के अभाव मे ‘भाभी के पापड़’ खाकर कोरोना से निबटने का उपदेश जनता को दिया जा रहा है, कोरोना ‘मईया’ की पूजा करने की सलाह दी जा रही है।और मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, मरने वालों की संख्या भी भयावह हो रही है।
कोरोना के इस संकट ने आम लोगों की जिंदगी बिलकुल ध्वस्त कर दी है। चारों तरफ, अनिश्चितता का माहौल है। उद्योग, व्यापार, उत्पादन, कृषि सब बुरी तरह से प्रभावित हैं और इन क्षेत्रों मे काम करने वाले लाखों महिलाओं और पुरुषों का भविष्य गर्दिश मे है। जो प्रवासी असीम कष्ट बर्दाश्त करके अपने घर पहुँचकर कसमे खा रहे थे की अब गाँव छोड़कर वह कभी नहीं जाएँगे, अब, मजबूर होकर, फिर गाँव छोड़कर नौकरी की तलाश मे निकल रहे हैं। उनके राज्यों की सरकार चलाने वालों के खोखले वादों से पेट नहीं भरता है!
महिलाए इस संकट की चौतरफा मार बर्दाश्त कर रही हैं। भूख और असुरक्षा ने उनको घेर रखा है। सरकारी राशन जो उन्हे मुफ्त मे हर हालत मे मिलना चाहिए, उससे भी उन्हे बड़ी संख्या मे वंचित रखा जा रहा है। काम कही ढूँढे नहीं मिलता। मनरेगा का काम शुरू तो कर दिया गया है लेकिन उसके काम के दिन बढ़ाए नहीं जा रहे हैं। अब 100 दिन के काम को तमाम घरवालों के बीच और परदेस से लौटने वालों के बीच बाँटना पड़ता है और महिलाओं के हिस्से मे आने वाला काम कम होता चला जाता है। शहरों मे इस योजना को शुरू करने की बात सरकार के समझ ही मे नहीं आती।
बहुत स्पष्ट है की सरकार की प्राथमिकता जनता की ज़रूरतों से मेल नहीं खाती हैं। रेल का निजीकरण करना, चुनिंदा घरानो की संपत्ति को इस हद तक बढ़ाना कि उसकी कल्पना भी करना मुश्किल है, मज़दूरों के अधिकारों मे लगातार कटौती करना, किसानों को बीज, खाद, पानी और बिजली से वंचित रख, उनकी फसल की लूट मे पूरी मदद करना और, संविधान को ताक पर रख के, तमाम नागरिकों के बुनियादी और कानूनी हुकूक को कठोरता से कुचलना, यह सरकार की प्राथमिकताएं हैं जिन्हे वह बड़ी क्रूरता से लागू कर रही है।
कोरोना के संकट द्वारा पैदा माहौल की दिक्कतों के बावजूद, विरोध की आवाज़ तेज हो रही है। हमे इस बात पर गर्व है कि पिछले महीने मे देश के कोने-कोने मे एडवा की तमाम इकाइयों ने क्षमता से अधिक मेहनत की है। बंगाल की हमारी बहनों ने अमफाम तूफान से मची तबाही का मुकाबला करते हुए, हजारों परिवारों को राहत पहुंचाने का काम किया है। असम मे आए भयानक बाढ़ से पीड़ित लोगों के बीच हमारी बहने पूरी ताकत के साथ मदद का काम कर रही हैं। देश भर मे रोज़गार, राशन और अन्य सवालों को लेकर 1 जून को पूरे संगठन के लोगों ने सक्रियता दिखाई। 10 जून को अन्य जन संगठनों के साथ, हमारी तमाम इकाइयों ने आवश्यक वस्तु कानून मे संशोधनों का डटकर विरोध किया। 23 जुलाई को, अपनी प्रिय नेता, कैप्टन लक्ष्मी सहगल के स्मृति दिवस के अवसर पर, गाँव, कस्बे और शहरों के तमाम चैराहों पर हमारी बहनों ने बैनर लगाए, पर्चे बांटे और सार्वजनिक स्वास्थ सेवाओं को मजबूत करने की मांग उठाई।
विरोध के इन तरीको के साथ, हमारी सदस्यों ने इस संकट के दौर मे, प्रचार करने और अपने विरोध व्यक्त करने का बहुत ही कारगर और प्रभावशाली तरीका सोशल मीडिया के इस्तेमाल के रूप मे विकसित किया है। राज्य स्तर पर ही नहीं बल्कि जिले और कहीं कहीं इकाई के स्तर पर, फेसबुक पेज और व्हाट्स एप के माध्यम से अपनी बात को दूर दूर तक पहुंचाने और अपने आक्रोश का इज़हार करने का काम किया जा रहा है।
इस संकट के दौर अनगिनत नई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। इन नई चुनौतियों से निबटने के लिए नए रास्ते भी ढूँढे जा रहे हैं, आपस मे सामूहिकता की सोच को मजबूत किया जा रहा है और जिस संगठनात्मक शक्ति की आज आवश्यकता है, उसके निर्माण मे जुटने की शुरुआत हो गयी है।
सुभाषिनी अली