संपादकीय
देखते-देखते, पिछले 7 सालों मे मनुवादी-हिंदुत्ववादी ताकतों ने सत्ता का पूरा इस्तेमाल करके, बहुत कुछ बदल डाला है। धर्म की परिभाषा, त्योहारों को मनाने का तरीका भी बदल डाला है। अब धर्म का मतलब ही दूसरे धर्म मानने वाले लोगों से नफरत करना, त्योहार मनाने का तरीका हो गया है अपनी ताकत का प्रदर्शन करना और दूसरे धर्म को मानने वालों पर हमला करना। यही नहीं, धार्मिक मान्यताओं के प्रति निष्ठा का अर्थ यह भी हो गया है कि ब्राह्मणवादी सोच का महिमामंडन किया जाये और जिन्हे छोटी जाति का समझा जाता है, उनके तमाम नागरिक अधिकारों को छीना जाए, उन्हे शिक्षा और बेहतर पेशों के क्षेत्रों से दूर किया जाये।
अबकी साल, रामनवमी, हनुमान जयंती और रमजान सब एक साथ पड़े। यह मौके होते थे आपस मे प्रसाद बांटने के, अफतारी की फुलकियाँ और खजूर एक साथ खाने के और बच्चों के प्रिय हनुमान के जन्म की खुशियाँ मनाने के लेकिन अबकी साल ऐसा नहीं कुछ और ही हुआ। रामनवमी और हनुमान जयंती को संघ परिवार के लोगों ने शक्ति प्रदर्शन और हमलावर आयोजनों के लिए इस्तेमाल किया। जो कुछ मध्य प्रदेश और दिल्ली मे हुआ, वह ऐसे ही नहीं हुआ। उसकी तैयारी आरएसएस की शाखाओं, वीएचपी के सम्मेलनों और बजरंग दल की बैठकों मे कई महीनो से चली। धर्म संसद के आयोजानों मे भगवाधारी अधर्मियों ने मुसलमानों के कत्लेआम और मुसलमान महिलाओं के सामूहिक बलात्कार की धमकियाँ बिलकुल ही निर्भीक होकर दी। मध्यमार्गी मीडिया ने अपनी पूरी ताकत दिन रात भड़काऊ तस्वीरें, वीडियो और समाचार परोसने मे झोंक दी। पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिका ने अपनी आंखे फेर ली या फिर हल्के-फुल्के तरीके से कुछ उपदेश दे डाले। इस सबका नतीजा हुआ की उत्तर भारत के तमाम भाजपा-शासित राज्यों के तमाम इलाको मे, रामनवमी और हनुमान जयंती के कई जुलूसों मे तलवार लहराते, लाठी भाँजते और कट्टे दिखाते लोगों ने भाग लिया। साथ अश्लील गाने बजाते हुए डीजे चले और मुस्लिम आबादी के अंदर घुसकर, मस्जिदों के सामने नमाज के समय रुककर खूब तांडव किया गया। कहीं कहीं तो मामला टल गया लेकिन खरगौन, बड़वानी, रुड़की और जहांगीरपुरी में टकराव हुआ और पीड़ित पक्ष को ही जिम्मेदार ठहराकर, उन्ही पर पुलिस का कहर बरपा, उन्ही की गिरफ्तारी हुई और फिर उन्ही के घरों और दुकानों पर बड़ी बेरहमी के साथ बुलडोजर चलाये गए। (इस न्यूजलेटेर मे इन तमाम घटनाओं की विस्तृत रिपोर्ट आप देख सकते हैं।)
कोई संयोग नहीं कि इन्ही दिनों मे, इसी इलाके मे, दलितों पर जघन्य अत्याचार हुए हैं। उ प्र के राय बरेली के एक गाँव मे एक दलित लड़के से ठाकुरों ने अपने तलवे चटवाये, मध्य प्रदेश मे चंदवासा, उज्जैन मे राजपूतों ने दलितों की बारात पर पथराव किया, रीवा मे एक नाबालिग लड़की के साथ एक तथाकथित महंत जो वेदांती के भतीजे हैं, ने बलात्कार किया और ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष के उन्हे सुरक्षा दी।
इसी दौर मे दो अंतरधार्मिक विवाहों को लेकर मध्य प्रदेश के इटारसी और उ प्र के आगरा मे मुस्लिम परिवार के घरों और दुकान पर प्रशासन द्वारा बुलडोजर चला दिये गया हैं जबकि न्यायालय ने दोनों दंपत्नियों को साथ रहने के अनुमति प्रदान की।
इस पूरे घटनाक्रम के बारे मे यह समझना जरूरी है कि तनाव या टकराव अपने आप नहीं हुए हैं, इनके पीछे लंबी तैयारी, मीडिया का उकसावा और सरकार की पूरी ताकत है। यह सब मनुवादी-हिन्दुत्व के अजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। यह एजेंडा अल्पसंख्यकों और दलितो, आदिवादियों, पिछड़ों और महिलाओं के अधिकारों और जान माल पर हमलों तक सीमित नहीं है। इन हमलों से पैदा घृणा, शंका और भय के माहौल का फायदा उठाकर, मजदूरों, कर्मचारियों, किसानों और तमाम गरीबों को बेरोजगारी, बेगार, बदहाली, असहनीय कर्ज और निर्मम शोषण से घेरकर बर्बाद किया जा रहा है और देश की संपत्ति, हवाई अड्डे से बन्दरगाह से लेकर गेहूं तक अंबानी और अडानी को सौंपा जा रहा है।
इसके जवाब मे हर स्तर का विरोध आवश्यक है। विचारधारात्मक, संगठनात्मक, राजनैतिक। लेकिन इसके साथ अपने आपको संकट का सामना करने के लिए तैयार भी करना होगा। का बृन्दा ने दिल्ली के सीपीआईएम के साथियों के साथ, कोर्ट का आदेश लेकर बुलडोजर का सामना करने की जो नजीर पेश की है जिससे पूरे देश मे एक जबरदस्त संदेश गया, उससे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।
हरियाणा की हमारी बहादुर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिका बहनों की ऐतिहासिक हड़ताल भी हमे यही सबक देती है। आप सोचिए, दिसंबर से लेकर अप्रैल तक उनकी हड़ताल चली। कड़ाके की ठंड, मूसलाधुर बरसात और फिर जानलेवा गर्मी का सामना हमारे बहनों ने किया। लाठियाँ, गालियां, दुराचार सब कुछ उन्होने बर्दाश्त किया। बीमारी और मौतें भी झेली। कई घरों मे घरेलू हिंसा का सामना भी करना पड़ा। लेकिन हमारी वह बहादुर बहनों ने हिम्मत नहीं हारी। आखिर मे उनकी जीत हुई!
मई दिवस, जो अभी गुजरा है, उसका भी यही संदेश है - ‘‘हर मोर्चे पर संघर्ष करो! तभी हर मोर्चे पर जीतोगे!’’
सुभाषिनी अली
(राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, एडवा)